Home > National-mudde

Blog / 23 Apr 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) अफस्पा - संवैधानिकता पर सवाल (AFSPA: Question on Constitutionality)

image


(राष्ट्रीय मुद्दे) अफस्पा - संवैधानिकता पर सवाल (AFSPA: Question on Constitutionality)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): विभूति नारायण राय (पूर्व डी.जी.पी. उत्तर प्रदेश), प्रो. अजय गुडवर्थी (JNU में प्रोफ़ेसर और वरिष्ठ लेखक)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अरुणाचल प्रदेश के नौ में से तीन जिलों से विवादित अफस्पा कानून आंशिक रूप से हटा लिया गया है। हालांकि यह कानून म्यांमार से सटे इलाकों में लागू रहेगा। यह कदम राज्य में कानून लागू होने के 32 साल बाद उठाया गया है। ग़ौरतलब है कि पिछले साल मार्च में अफस्पा कानून को मेघालय से पूरी तरह हटा लिया गया था।

इसके अलावा लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कांग्रेस पार्टी ने घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इसमें ये वायदा किया गया है कि अगर कांग्रेस सत्ता में वापसी करती है तो आर्म्ड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट यानी AFSPA में संशोधन किया जाएगा।

AFSPA क़ानून की ऐतिहासिकता

भारत में सबसे पहले अंग्रेज सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए 1942 में अफस्पा को एक अध्यादेश के जरिए लागू किया था। आज़ादी के बाद साल 1947 में तात्कालिक अशांत स्थितियों से निपटने के लिये इसी अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक़ चार अलग-अलग अध्यादेश लाए गए थे। साल 1948 में केंद्र सरकार ने इन चारों अध्यादेशों को मिलाकर एक समग्र सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून बनाया। बाद में इस कानून को भारत सरकार ने 1957 में निरस्त कर दिया था और 1958 में AFSPA क़ानून लाया गया।

क्या है आर्म्ड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट?

आज़ादी के बाद नागालैंड समेत देश के पूर्वोत्तर इलाक़े में उग्रवाद तेज़ी से पनप रहा था। उग्रवाद से निपटने के लिए सेना की ज़रूरत महसूस हुई। उग्रवाद के विरूद्ध इस कार्यवाही में सेना की मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को केंद्र सरकार ने AFSPA क़ानून पारित किया। साल 1972 में इसमें कुछ संशोधन भी किया गया था।

कैसे लागू किया जाता है अफ्स्पा?

इस क़ानून के तहत, केंद्र या राज्य सरकार के पास किसी भी भारतीय क्षेत्र को “डिस्टर्ब” घोषित करने का अधिकार होता है। अफ्स्पा क़ानून की धारा (3) के तहत, अगर केंद्र सरकार की नज़र में कोई क्षेत्र “डिस्टर्ब”है तो इस पर वहां के राज्य सरकार की भी सहमति होनी चाहिए कि वो क्षेत्र “डिस्टर्ब”है या नहीं। लेकिन राज्य सरकारें केवल सुझाव दे सकती हैं। उनके सुझाव को मानने या न मानने की शक्ति राज्यपाल अथवा केंद्र के पास होती है।

'अशांत' यानी 'डिस्टर्ब' क्षेत्र

किसी भी क्षेत्र को 'अशांत' क्षेत्र AFSPA क़ानून की धारा 3 के तहत घोषित किया जाता है। अलग-अलग धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों और समुदायों के बीच विवादों के चलते राज्य या केंद्र सरकार किसी क्षेत्र को अशांत घोषित करती है। अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के मुताबिक़, एक बार कोई क्षेत्र 'अशांत' यानी 'डिस्टर्ब' घोषित हो गया तो कम से कम तीन महीने तक वहां सुरक्षा बलों की तैनाती रहती है।

कहाँ कहाँ लागू है AFSPA?

AFSPA देश के कई राज्यों में लागू है। जिनमें मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड शामिल हैं।

  • पंजाब में भी बढ़ते अलगाववादी हिंसक आंदोलन से निपटने के लिये केंद्र सरकार द्वारा 15 अक्तूबर, 1983 को पूरे पंजाब और चंडीगढ़ में अफ्स्पा कानून लागू कर दिया गया था। स्थिति सामान्य होने पर 1997 में इसे वापस ले लिया गया था।
  • जब 1989 के आस पास जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां पर भी लागू कर दिया गया।
  • AFSPA के विरोध में ही असम की सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने 15 साल तक अनशन किया था हालाँकि अब उनका अनशन समाप्त हो गया है।

अफस्पा लागू होने पर सेना को कौन-कौन से अधिकार मिल जाते हैं?

जब कोई क्षेत्र “डिस्टर्ब” घोषित कर दिया जाता है तो वहाँ पर सशस्त्र बलों के अधिकारियों को इस कानून की धारा-4 के मुताबिक़ निम्नलिखित शक्तियाँ मिल जाती हैं –

  • अफस्पा क़ानून सेना को ये अधिकार देता है कि वे किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं। गिरफ्तारी के दौरान वे किसी भी तरह की शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • सुरक्षा बल का अधिकारी महज़ शक के आधार पर किसी भी जगह की तलाशी ले सकता है और अगर उसे कोई खतरा नज़र आता है तो वो उस जगह को ही नष्ट करवा सकता है।
  • किसी वाहन को रोककर गैर-कानूनी ढंग से हथियार ले जाने का संदेह होने पर उसकी तलाशी ली जा सकती है।
  • अगर कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है तो उसे सीधे गोली मारी जा सकती है। और इस दौरान उस व्यक्ति की मौत होने पर उसकी जवाबदेही गोली चलाने या ऐसा आदेश देने वाले किसी अधिकारी पर नहीं होगी।
  • यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसको जल्द ही निकटतम पुलिस स्टेशन में पेश करना होता है। साथ ही कारण भी बताना होगा।

क्यों ज़रूरी है अफस्पा?

इस कानून से मिली शक्तियों के कारण ही हमारे सशस्त्र बल आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्रों और राजद्रोह के मामलों में बेहतर तरीके से अपना काम कर पाते हैं। दूसरे शब्दों में, यह कानून देश की एकता और अखंडता को बनाये रखने में मददगार है।

अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था और शांति बनाए रखने में इस कानून के प्रावधानों की अहम् भूमिका रही है। साथ ही साथ इस क़ानून से मिले अतिरिक्त अधिकारों के कारण ही सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ा है।

अफस्पा क्यों ज़रूरी नहीं है?

लागू होने के बाद से ही सशस्त्र बल द्वारा अफस्पा क़ानून के दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है। उन पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर और यौन उत्पीड़न जैसे आरोप भी लगते रहे हैं।

  • इस क़ानून के ज़रिए सशस्त्र बलों को जो असीमित शक्तियाँ मिली हुई हैं इससे वे असंवेदनशील और गैर-पेशेवर होते जा रहे हैं।
  • इस क़ानून का सबसे बड़ा प्रभाव मानवाधिकारों के उल्लंघन और नागरिकों के मूल अधिकारों के निलंबन के रूप में देखने को मिलता है। जिसका नतीजा ये होता है कि लोकतंत्र का असल मतलब ही ख़त्म हो जाता है।
  • लागू होने के दशकों बाद भी यह क़ानून अशांत क्षेत्रों में शान्ति व्यवस्था बहाल करने में सफल नहीं हो पाया, शायद इसीलिए इसे हटाने की मांग और तेज़ होने लगी है।
  • AFSPA की समीक्षा के लिये वर्ष 2004 में बनी रेड्डी समिति ने इस कानून को निरस्त करने की सिफारिश की थी।

सुप्रीम कोर्ट की क्या भूमिका रही है?

चूँकि कानून और व्यवस्था एक राज्य सूची का विषय है ऐसे में AFSPA की संवैधानिकता पर सवाल उठाना लाज़िमी है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 1998 के नागा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ के अपने एक फैसले में AFSPA की संवैधानिकता को बरकरार रखा है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने AFSPA को बेहतर तरीके से लागू करने लिए कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किये।

  • केंद्र सरकार स्वतः संज्ञान लेते हुए किसी क्षेत्र को 'अशांत' घोषित कर सकती है, लेकिन घोषणा करने से पहले उसे सम्बंधित राज्य सरकार से मशविरा करना होगा।
  • AFSPA क़ानून सरकार को 'अशांत क्षेत्र' घोषित करने के लिए मनमानी शक्तियां नहीं प्रदान करता है।
  • अफ्स्पा की घोषणा सीमित अवधि के लिए होनी चाहिए और हर 6 महीने पर इसकी समीक्षा होनी चाहिए।
  • AFSPA के तहत प्राधिकृत अधिकारी को प्रभावी कार्रवाई के लिए आवश्यक न्यूनतम बल का उपयोग करना चाहिए।
  • प्राधिकृत अधिकारी को सेना द्वारा जारी किए गए 'DOs और DON’Ts का सख्ती से पालन करना चाहिए।

क्या कभी कोई समीक्षा हुई है?

साल 2004 में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी.पी. जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इस समिति ने 2005 में दी अपनी सिफारिशों में इस कानून को ‘दमन का प्रतीक’बताते हुए इसे निरस्त करने की सिफारिश की थी। साथ ही समिति ने कहा था कि सशस्त्र बलों और केंद्रीय बलों की शक्तियों को स्पष्ट करने के लिए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 को संशोधित किया जाना चाहिए।

लेकिन सेना और रक्षा मंत्रालय ने इस कानून को ख़त्म करने का विरोध करते हुए इस समिति की सिफारिशों को खारिज़ कर दिया था।

UN ने 2012 में दी थी AFSPA हटाने की सलाह

साल 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट के ज़रिए भारत से आग्रह किया था कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में AFSPA का कोई जगह नहीं होना चाहिए। यह रिपोर्ट 2013 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश की गई थी।

ह्यूमन राइट्स वॉच का क्या कहना था?

मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने भी इस क़ानून की आलोचना की थी। इस संस्था का कहना था कि इस कानून में दुरुपयोग, भेदभाव और दमन की गुंजाईश है।

निष्कर्ष

समय-समय पर AFSPA क़ानून चर्चा में आता रहता है। आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में AFSPA की ज़रूरत ज़रूर महसूस होती है, लेकिन इसको प्रभावी ढंग से लागू करने की भी कवायद होनी चाहिए।